शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

मैं क्या करूँ.....


मैं क्या कहूँ
मैं क्या करूँ
क्या 
मैं ये कहूँ की-
तुम बहुत बुरी थी
बेवफा थी
धोखेबाज थी
तो सुन लो
मैं
नहीं कह सकता,
क्या 
शराब की लत लगा डालूँ
तुम्हारे गम में जीना छोड़ दूँ
या फिर
तुम्हारे याद में
तड़पता रहूँ
बताओ मैं क्या करूं
तो सुनो
मैं 
ये भी नहीं कर सकता
आखिर
किस बात से खुश होओगी तुम
मैं भी कैसा पागल हूँ..
तुम्हे अगर मालूम ही होता
फिर तुम जाती ही क्यों
मुझे
अकेला और
बेसहारा छोड़कर .......

17 टिप्‍पणियां:

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  3. कविता साथ के चित्र में मूर्त हो उठी है.

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  4. इतनी निराशा क्यों ..नए सिरे से जीवन सुरु करो

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  5. मनोभावों का सशक्त चित्रण, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  6. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति मित्र | बहुत सुन्दर रचना | आभार

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  7. बहतरीन प्रस्तुति बहुत उम्दा।।।।।।।। और ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब

    आज की मेरी नई रचना जो आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही है

    ये कैसी मोहब्बत है

    खुशबू

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  8. शुक्रिया पंकज मेरी कविता को पसंद करने के लिए
    आपकी ये नज़्म पढ़ी . बहुत सुन्दर लिखा है .. बधाई स्वीकार करिए
    प्रेम के कई शेड्स है इसमें. शब्द भावपूर्ण है .

    विजय
    www.poemsofvijay.blogspot.in

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  9. इसे थोडा कवितामय बनाने की कोशिश कीजिये .....!!

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मेरी रचनाओं पर आपके द्वारा दिए गए प्रतिक्रिया स्वरुप एक-एक शब्द के लिए आप सबों को तहे दिल से शुक्रिया ...उपस्थिति बनायें रखें ...आभार