शनिवार, 21 जुलाई 2012

बंधन

तुम मुझे बांधती गयी                                         
और मैं
बंधता गया बिना किसी हिचकिचाहट के,
फिर अचानक एक दिन
चौंक उठा मैं
लगा जैसे, अभी-अभी तन्द्रा टूटी हो मेरी
मैं पूछ बैठा
इतनी कसाव क्यो,
यह कैसा बंधन है ?
तुम चुपचाप मुस्कुराती रही
बिना कुछ बोले.....

पतझड़


जब वो नए पत्तों से भर देता है                      
पूरे पेड़ को ,
तभी वो आकर
सारे पत्तों को नोच डालता है
मानो
उसे ठूँठ की जिंदगी ही पसंद हो शायद....

शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

जब तुम थी...


जब तुम थी                                                       
और मै भी था
हवाएँ काफी सर्द थी
और
आज
पता नहीं हवाओं को क्या हो गया है
कितने ही घरों को खाक कर डाला इसने..