मंगलवार, 4 सितंबर 2012

गज़ल


रोते रहे हम याद में उनके
वो करवट बदल कर सो गए

ढूंढते रहे हम खाबों में उन्हें
ना जाने कहाँ वो खो गए

फ़कत गुजरे थे चार दिन
वो जुदाई के बीज बो गए

मैं जलाता रहा शमा- ए- मुहब्बत
वो किसी और के हो गए

सुना है आँखे नम थी उनकी भी
शायद खानापूर्ति को रो गए

यूँ ही जलता रहा ‘पंकज’ मोहब्बत में
लौटे नहीं वो अब तक कब के जो गए

1 टिप्पणी:

मेरी रचनाओं पर आपके द्वारा दिए गए प्रतिक्रिया स्वरुप एक-एक शब्द के लिए आप सबों को तहे दिल से शुक्रिया ...उपस्थिति बनायें रखें ...आभार