गुरुवार, 6 सितंबर 2012

जली हुई तक़दीर


आज फिर
माँ के हाथों जल गई एक रोटी,
खीझ उठी माँ
जली हुई रोटी को तवे से पटकते हुए बोली-
इतनी सावधानी के बावजूद
आज फिर जल गई रोटी
मेरी तक़दीर की तरह...
आज फिर खाने पर
मेरे पिता का बरबराना निश्चित है,
आज फिर
गुस्से का सामना करना होगा
जली हुयी रोटी को
जैसे मेरी माँ करती है
मेरे पिता का सामना,
तब कोई
असमानता नहीं रह जाती
उस जली हुयी रोटी और उसकी
तक़दीर में.......|

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