रविवार, 21 फ़रवरी 2016

मेरी नौ कविताएं जनवरी ( 2016)

जनरल बोगी में सफर करते हुए
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स्लीपर और एसी बोगी में सफर करने वालों
तुम क्या जानो
जनरल बोगी में सफर करने वालों का दर्द
चैन वाला गुरकौआ बैग घसीटने वालों
तुम क्या जानो
भारी गठरी के साथ सफर करने वालों का दर्द
तुम्हारी तरह नहीं होता उनके पास
किसी नामी कंपनी वाला लेदर का पर्स
और उसमें हजार पांच सौ के नोट
उनका पर्स होता है
उस गठरी के सबसे नीचे रखी मटमैली धोती या साड़ी का एक खुंट
जिसमें बंधी होती होती है उनकी गाढी कमाई
जिसे बार बार टटोल आश्वस्त होता है
जनरल बोगी का वो यात्री
कि कहीं गठरी कट तो नहीं गई
किसी फैशन शो के मॉडल सी तुम्हारी
बहु बेटियां क्या जाने
मनचलोें  की नजरों से कैसे बचाती हैं खुद को
उनकी बहु बेटियां
संभाली गई आंचल को बार बार किस तरह संभालती हैं उनकी माँ बहनें
सूखी डकार लेने वालों तुम क्या जानो
रूमाल में बंधी उनकी सूखी रोटी का स्वाद
जो कहीं बेहतर होता है
घी में चुपड़ी और किचन रैपर मेें लिपटी
तेरी रोटियों से,,,,,,
                 ------------------    (3 जनवरी )


हे वीर सपूतों है तुझे नमन
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कानों से उंगली हटाइए सरकार
धमाकों की आवाज सुनिये सरकार

रो रही विधवाएं सुलग रही है चिताएं
अब तो मुंह से कुछ कहिये सरकार

शहीदों के शरीर में भी जान है
प्राणों से ऐसे ना खेलिए सरकार

वो घर में घुस हमें मार रहा
अब तो उसे खदेड़िए सरकार

हमें तो मालूम है हमारी औकात
उसे उसकी औकात दिखाइये सरकार

आँखे हैं नम गला गया है रूंध
शहीदों की लाज बचाइए सरकार
              -------------------(5 जनवरी )

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किसी अपने का जाना
इतिहास होना है
जिसमे राजा रानी रणभूमि सिपाही मंत्री
और ना जाने क्या कुछ
सुना है
कभी कभी
इतिहास दोहराता है खुद को
लेकिन वो कभी नहीं लौटते
खुद को दोहराने
कभी कभी
लगता है भूत नहीं
आज भी वर्तमान हैं वो
उनके हाथ अब भी उठे हुए हैं
आशीर्वाद देने की मुद्रा में,,,,
                 ------------------- (8 जनवरी )

अलाव
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एक अलाव
कुछ लोग
और ढेर सारी बातें
खेत खलिहान
कटाई बुआई
गौना ब्याह
दुनिया जहान
सर सरपंच
और भी बहुत कुछ होता है
उनकी बातों में
जो बैठे होते हैं अलाव के इर्द गिर्द
अपने अपने दिल की भड़ास निकालते
एक दूसरे से खुद को
श्रेष्ठ साबित करने की जिद्द
कभी कभी
कई फैसलों के गवाह बनती है ये अलाव
बावजूद
आप नही उतर सकते अलाव मे
अलाव उतरती है आपके भीतर
अलाव की लकड़ियां चुपचाप
जल रही है
गुर्रा रही है फट फट की आवाज के साथ
बीच बीच में
पसीने निकल आते हैं
लकड़ियां पसीने को भी जला डालती है
श्रेष्ठ भी जल रहे हैं
बीच बीच में
उन्हें भी जला रही है लकड़ियां
उनमे से एक
अधजली लकड़ी को डाल देता है
फिर धधकते अलाव में
लकड़ियां मन मसोस जल रही है
खाक होने तक
ना जाने कितनी लकड़ियां
खाक हो रही है इस अलाव संवाद में,,,
                     -------------------( 9 जनवरी )

ब्रेकिंग न्यूज
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एक ताजा समाचार
फलां ने फलां देश पर हमला किया
7 जवान मारे गए
कोई बात नहीं
जवान होते ही हैं मरने के लिए
अब आगे
फलां देश में जश्न का माहौल
ज्वलंत मुद्दा भेड़ियों के लिए
बहसबाजी शुरू
अब बारी है हमला सिद्द करने की
हमलावर-
तुम सबूत दो कि ये हमले
हमने ही किये हैं
जी सर जी - जी- जी
सबूत दे देंगे सर
सबूत पेश किया गया
हमलावर-
सारे सबूत गलत हैं
पंचों के सामने हमें
बदनाम करने की साजिश है
जिस समय हमला हुआ
उस समय हम और हमारे लोग
अपने मुखिया के जन्मदिन का जश्न मना रहे थे
ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे
गाने पर थिरक रहे थे
देखो तो
अब भी पैरों में सूजन है,,,
                                    ( 13 जनवरी )

रोहित वेमुला की मौत पर
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ना तो
मैं उन्हे द्रोणाचार्य कहूंगा
और ना ही
तुम्हे एकलव्य से संबोधित करूंगा
गुरू द्रोण और एकलव्य की विरासत वाली धरती तुम्हें सहन नहीं कर पायी
और बुला लिया चुपके से अपने गर्भ में
तुम मरे नहीं हो मित्र
बस आवाज लगाकर कहीं चले गए हो सुस्ताने
क्योंकि बुलंद आवाज वाले
मरा नहीं करते
बस विराम देते हैं खुद को
तुम्हारी आवाज आज भी गूंज रही होगी उन बहरों की कानों में
पर्दे फट रहे होंगे खून के फब्बारे छूट रहे होंगे उनके कानों से
बस ये सब देखने के लिए तुम नहीं हो
लेकिन मुझे मालूम है
तुम सब देख रहे हो बंद आंखों से
और मुस्कुरा रहे हो उनकी हालात पर
नमन है तुम्हें,,,,
                                  ,,,,,,,,,( 19 जनवरी )

चिंता
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वो जागती आंखो से सपने देखती है
रिश्ते लेकर अगुआ खड़े हैं
पूरा घर अस्त व्यस्त
चाय पानी
नास्ता पान सिगरेट
कोई कमी नहीं होने चाहिए
आखिर घर और पिता की इज्जत का सवाल है
क्योंकि बात बे बात
नाक कट जाती है समाज में
जो होते हैं
बेटी का पिता
बेटी जो ना जाने कब
किस घर की बहु बने या बेटी ही रहे
बार बार झांक रही है पर्दे की ओट से
कलेजा इतने जोरों से धड़क रहा है मानो
दस किमी दौड़ कर आयी हो
उसे फिर गुजरना है उस दौर से
जिससे गुजर चुकी है पाँच छः बार पहले ही
वह चिंतित नहीं है
उसे मालूम है
फिर ठोका बजाया जाएगा उसे
बस चिंता है तो
ठोकने बजाने वालों की
ना जाने किस बात पर
ताल बिगड़ जाए
नास्ता पानी
पान पुड़िया सब हो चुका
उसे इस बात की भी चिंता नहीं
बस चिंता है तो
चबाए जा रहे पान की
जिससे लाल रंग का पिक निकलेगा या
फिर सफेद हो जाएगा पिक
और पानी फिर जाएगा उसके पिता की उम्मीद पर
बस यही चिंताएं उसका कलेजा धड़का रहा है
और बार बार
आसमान ताक रही है
ऐसे तो लड़की सब जानती है
बस नहीं जानती तो
अपने जोड़ीदार के बारे में
क्योंकि
बचपन से तो यही सुनती आयी है कि
जोड़ी तो आसमान में ही तय होते हैं,,,,
                                  ,,,,,,,,,, ( 23 जनवरी )
कवि
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सुना है
वो बहुत अच्छी कविताएं लिखते हैं
वो औरत को चांद
और किसान को देश का रीढ लिखते हैं
सुना है
बहुत बड़े कवि हैं वो
खूब लाइक मिलता है उन्हें
उनकी पंक्तियों पर
देश की सर्वश्रेष्ठ पत्रिकाओं में छपती है
उनकी रचनाएं
सोचता हूं
मैं भी छपूं
देश की अच्छी पत्रिकाओं में
मैं भी लिखूं
उलूल जलूल बातें
किसी को न समझ आने वाली
खराब कविताएं
और कहलाउं
एक अच्छा कवि
कैसे बताऊं मैं उन्हे
मैं स्री के बालों में उलझा नहीं रह सकता
स्री के बाल तो उन्होंने अपनी मुट्ठी में जकड़ रक्खा है
चांद तारे धरती पर नहीं ला सकता
धरती पहले से ही पटी पड़ी है
औरतों को पिघलता बर्फ नहीं कह सकता
फिर मैं ग्लेशियर से क्या कहूंगा
किसान को देश की आत्मा नहीं कह सकता
क्योंकि आत्माएं तो रोज आत्महत्या कर रही है
मैं चिंतित हूं
आखिर वो शब्द कहां से लाऊं
जिससे कहला सकूं
एक अच्छा कवि,,,
                                ,,,,,,,,,,,,,( 24 जनवरी )

देश की तस्वीर
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इस वक्त देश की तस्वीर
कैसी बन रही है आपके जेहन में
मुझे नहीं पता
बस इतना पता है
खदकते हुए अदहन में
आंच और तेज किया जा रहा है
कुचले जा रहे हैं एयर फोर्स
किसी अॉडी तले
मशहूर डान चुनौती दे रहा है
अपनी सजा को
आखिर किस रचनाधर्मिता की बात कर रहे हैं
आप
जिनके शब्द तेज आंच पर साग पका रहे हों
किसी के घर झाड़ू लगा रहे हों
या फिर
औंधे मुंह मुर्गा बना बैठा हो
चलिए छोड़ दिया
देश की मिजाज पर ही बातें करें
आंच
अदहन
अॉडी
एयर फोर्स
सब बेतुकी बातें हैं
खदकता है कुछ न कुछ सब में
मुझमे भी,,,,,
                  ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ( 28 जनवरी )      

©पंकज कुमार साह