बुधवार, 19 सितंबर 2012

कहीं किसी ओर


मैं ढूंढता रहा हूँ अब तक
कहाँ हो तुम
आओ चलें
कहीं किसी ओर
किसी आकाश के नीचे
किसी बदल के पीछे
आओ
मुहब्बत हमेशा जिन्दा रहती है
इस वाक्य कों चरितार्थ करें
हम और तुम
आओ
चलें कहीं किसी ओर 
हमारा और तुम्हारा साथ
बना रहेगा
तुम्हारे वादे कों जीवित रखें 
आओ
चले कहीं किसी ओर
आओ
बादलों कों ओढ लें
मुझे मालूम है
तरस रही होगी तुम बूंद - बूंद कों
तेरी प्यास बढ़ गयी होगी
मेरे बगैर
लेकिन मैं भी तो....
खैर छोड़ो
आओ
सावन के बूंदों को पी लें
एक घूंट तुम
एक घूंट हम...
मुझे मालूम है
तुम थक गयी होगी
मगर तुम्हारी आँखे
अब भी
बह रही होगी
आओ
तुम्हारी आँखों कों बहने से रोकें
आओ चलें कहीं किसी ओर

1 टिप्पणी:

मेरी रचनाओं पर आपके द्वारा दिए गए प्रतिक्रिया स्वरुप एक-एक शब्द के लिए आप सबों को तहे दिल से शुक्रिया ...उपस्थिति बनायें रखें ...आभार