मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

तक़दीर का जलना जारी है



तक़दीर का जलना जारी है
ये समय की मारा मारी है

यहाँ फफोले पड़ गए पैरों में
वहाँ खाली जा रही सवारी है

रोटी पे नमक को तरस रहे
भला ये कैसी लाचारी है

जहाँ रिश्ते नातों की कद्र नहीं
वहाँ दुल्हन बैठी कुँवारी है

घर फूटे और गवार लुटे
कहावत कितनी प्यारी है

लिखते हो पंकज’ खूब लिखो
समझ लो लेखन अब बेगारी है

11 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
  3. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
  4. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
  6. वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.

    जवाब देंहटाएं

मेरी रचनाओं पर आपके द्वारा दिए गए प्रतिक्रिया स्वरुप एक-एक शब्द के लिए आप सबों को तहे दिल से शुक्रिया ...उपस्थिति बनायें रखें ...आभार