गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

तेरी चाहतों को ......


तेरी चाहतों को अपने दिल में दबाकर
तेरी यादों को अपना बनाए हुए हैं

अरे बेखबर जरा देखो इधर भी
तुम्हारे ही गम के सताए हुए हैं

बारिश की बूंदों से भीगा नहीं मैं
खुद की आँसुओं में नहाए हुए हैं

दुआओं में उठते हैं मेरे हाथ अब भी
सलामती को तेरे सर झुकाए हुए हैं

राह-ए–मुहब्बत में बैठा हूँ अब तक
तेरी राहों में पलकें बिछाए हुए हैं

आए नहीं अब तक शौकीं-ए–मुजरा
अभी भी हम महफ़िल जमाए हुए हैं

मुकद्दर भी रूठा है दुनिया भी रूठी
तेरे ही दर से तो ठुकराए हुए हैं

जिन्हें शौक हों वो खेलें शोलों से
हम तो पानी के जलाए हुए हैं

मंदिर-मस्जिद न गिरजा गुरुद्वारा
खुदा-ए-मुहब्बत दिल में बसाए हुए हैं

देकर ‘पंकज’ को सजा-ए-मुहब्बत
खुद को शहंशाह बनाए हुए हैं           

1 टिप्पणी:

मेरी रचनाओं पर आपके द्वारा दिए गए प्रतिक्रिया स्वरुप एक-एक शब्द के लिए आप सबों को तहे दिल से शुक्रिया ...उपस्थिति बनायें रखें ...आभार