सोमवार, 7 दिसंबर 2015

गुलाम खून

कल चौराहे पर
खून देखा
पता नहीं किसका था
ना तो नाम लिखा था
और ना ही जात
मैं चुपचाप चलता बना
अपने गंतव्य को
गाहे बगाहे
कौन उलझे इस खून से
वर्षों पहले
सुभाष जी उलझ पड़े थे
मांगे फिर रहे थे लोगों से खून
लेकिन खुद का खून
कहां बिखरा
किसी को पता नहीं
अब तक
बुद्धिजिवियों के शोध का विषय है
निष्कर्ष
हम आजाद हो गए
हिंद हिन्दुस्तान भारत हो गया
फौज
आज सीमाओं पर खड़े होकर
सर कटा रही है
सब कुछ ठीक हुआ बस
हमारा खून गुलाम हो गया
जब जिसने चाहा चूसा
मन भर जाने पर
हमारे मुंह पर थूका,,,
                    @पंकज कुमार साह

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