शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

वसंत


तेरा आना भी अखरता है
तेरा जाना भी अखरता है

डूबा हूँ किसी की याद में
अब याद सताना अखरता है

जब  उभरती है पुरानी यादें जेहन में
तब खुद पे रोना अखरता है

भर दिए तूने फूलों से गुलशन
तेरा खुद पे इतराना अखरता है

घमंड  है तुझे बसंती बयारों पर
मुझे लोगों का सिहरना अखरता है

बहुत  कह लिया  बहुत सुन लिया
अब तेरा  नाम लेना भी अखरता है ...









3 टिप्‍पणियां:

मेरी रचनाओं पर आपके द्वारा दिए गए प्रतिक्रिया स्वरुप एक-एक शब्द के लिए आप सबों को तहे दिल से शुक्रिया ...उपस्थिति बनायें रखें ...आभार