बुधवार, 16 जनवरी 2013

बेबाक बोल


सन्दर्भ : दिल्ली सामुहिक दुष्कर्म कांड

अत्यंत दुःख हुआ जब सुना कि अंततः दामिनी जीवन से हार गयी | मौत ने जीत लिया उसको.... और उसमे उसका साथ निभाया हमारे कुछ वहशी महापुरुषों ने , जिन्होंने दामिनी को उस अवस्था मे पहुँचाया | पिछले 20 दिनों से सारे देश मे मातम छाया हुआ था (जब से दुष्कर्म कांड हुआ ), उसके जाने के बाद और पुरे देश के आँखों से आंसू नदी कि धार की तरह बह निकली – ऐसा नहीं है कि दामिनी सभी रोने वालों की रिश्तेदार थी...लेकिन ऐसा होने के बाद दामिनी किसी का कुछ न होकर भी बहुत कुछ निकली | वो चली गयी , लोगों को जागृत कर गयी.... खुद सो कर हमें जगा गयी ...उसे नमन बार-बार नमन ......|
यहाँ तक तो ठीक है ...इस कांड के बाद पुरे देश में हडकंप सा मच गया ...क्या संसद क्या जंतर-मंतर हर तरफ एक सी रेलम पेल भीड़ ...क्यों ..आखिर क्यों ....क्या सिर्फ उस लड़की के कारण या फिर मन में व्याप्त अनचाहे भय के कारण ...कि हो न हो अगला दामिनी हम मे से ही कोई बन जाये ...| ये सच है कि चुकि ये घटना राजधानी में घटित हुई इसलिए लोगों ने इस आड़ों हाथों लिया ....दूसरी तरफ ये भी सच है कि औसतन हर राज्य के हर जिले मे प्रत्येक महीने कम से कम 20 ऐसे ही दुष्कर्म की घटनाएँ होती है (जो वास्तव मे घटना होता नहीं बना दिया जाता है) लेकिन इसका असर न तो लोगों पर पड़ता और न ही यहाँ के सरकार पर ----क्यों ? इस कांड के पहले भी तो दुष्कर्म के मामले सामने आते थे क्या कभी इतना हंगामा या शोरगुल हुआ..? बिलकुल नहीं...| अगर ज्यादा से ज्यादा हुआ तो अख़बारों मे यह मामला मशालेदार ख़बरों की जगह प्रकाशित हुआ... बस मामला ख़त्म |                                                        अब सवाल है की दुष्कर्म आखिर करता कौन है ? क्या वो कोई विशेष या महान व्यक्ति है या फिर हम मे से ही कोई है | दुष्कर्म कि 80% घटनाएँ (अख़बारों के अनुसार ) किसी अपने रिश्तेदार या जान -पहचान के लोगों द्वारा किये जाते हैं | तब कहाँ थी सरकार कहाँ थे अभी हाय तौबा मचाने वाले लोग...? अगर हम पहले ही जग चुके होते तो शायद ..... खैर पुरानी कहावत है - देर आयद दुरुस्त आयद ----मेरा भारत महान.... यही तो है एकता की पहचान |
      आखिर क्यों होता है दुष्कर्म ...? क्या इसके लिए लड़कियां भी उतनी ही जिम्मेदार नहीं होती है..?जितना कि लड़के(कुछ मामलों को छोड़ दें तो )..| दुष्कर्म आज के दौर का देन नहीं....बल्कि  यह उस समय से हमारे समाज मे व्याप्त है जब हमारी श्रृष्टि भी नहीं हुई थी..... अर्थात यह मर्ज बहुत ही पुराना है ...ये सच है कि मर्ज जितना पुराना होता है उतना ही कष्टदायी होता है ..और उसी के शिकार अब तक हो रहे हैं हम ....कभी हमने सोचा है कि आखिर क्यों होता है लड़कों मे वहशीपन | क्यों कोई भी लड़का आपा खोता है लड़कियों को देखकर ...क्या हम इसमें सिर्फ लड़कों को जिम्मेदार न मानकर आज के सामाजिक परिवेश सिनेमा और पश्चिमी सभ्यता को दोष देना उचित नहीं समझते ...ये भी तो उतना ही जिम्मेदार है जितना कि लड़के... ये सभी तो माध्यम हैं आग मे घी डालने का ...फिर जलने से परहेज क्यों ...
      उस समय के विश्वामित्र जैसे महर्षि जब किसी अप्सरा के तामझाम, लटके-झटके को देख कर स्त्री-मोह मे फंस सकते है, तुलसीदास जैसे महाकवि स्त्री मोह मे पागल होकर उस अँधेरी और तूफानी रात मे अपनी स्त्री से मिलने( दैहिक प्रेम के कारण ) को आतुर हो सकते है तो फिर आज का युग तो कलयुग का है.... बिलकुल पाप और अन्धकार का युग...फिर आज की अप्सराओं के वस्त्र बड़े शोभनीय और आर्थिक व्यवस्था को ध्यान मे रखकर बनायी गयी होती है ....आजकल कम कपड़ों की नुमाइश बड़े जोर शोर के साथ हो रहा है.... कोई किसी से कम नहीं....एक प्रतियोगिता सी चल पड़ी है कौन कितने कम कपड़े पहन कर भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बना सकता है.... बहुत जगह सुनने को मिला कि लड़कियों के कपड़ों को देख कर लड़कों को आपत्ति क्यों ...? सीधी सी बात है लाल कपड़े पहन कर अगर कोई बैल के सामने खड़े हो कर कहे आ बैल मुझे मार ....तो बैल तो आखिर बैल है.....ऐसे मे कैसे आशा की जा सकती है कि आज के पुरुष इस मोह से बच सकेंगे...ऐसे मे सिर्फ लड़कों को दोष नहीं दिया जा सकता ...ये सच है कि सारे दुष्कर्म मे लड़कों कि पहल होती है तो लड़कियां भी दूध कि धूलि नहीं होती .... आज गावों मे बहुत से ऐसे कांड सामने आते हैं जहाँ लड़के लड़की मे सम्भोग तो होते है दोनों कि मर्जी से... लेकिन किसी ने पकड़ लिया तो लड़की अपनी इज्जत बचाने के लिए लड़के को फंसा देती है ये कहकर कि ये उसके साथ जबरदस्ती कर रहे थे... उसके आगे क्या होता है ....ये किसी से छुपा नहीं ......लड़के गलत हैं ...चाचा.. मामा...दादा और नाना भी तो गलतियाँ करते हैं... जो अपनी बेटी-पोती सामान लड़कियों के साथ दुष्कर्म मे लिप्त रहते है तब हमारा समाज और देश को कोई फर्क क्यों नहीं पड़ता?
      चुकि हमारा देश पुरुष प्रधान है फिर भी यहाँ स्त्रियों को यहाँ देवी का दर्जा प्राप्त है .........ये सब बात  उस समय कोई मायने नहीं रखता जब किसी स्त्री कि आबरू तार-तार हो जाती है ..उस समय भी तो सिर्फ पुरुष ही अपनी आवाजें बुलंद करते हैं...काफी हद तक कोशिश की जाती है कि मामला रफा दफा कर दिया जाय आखिर पुरुषों कि भी तो इज्जत है ...क्या फर्क पड़ता है .....वाह रे मेरा भारत ... वाह रे भारतीय पुरुष ताजा उदहारण हमारे सामने है ...दामिनी दुष्कर्म मे भारतीय राजनीतिज्ञ (जिसमे पुरूषों कि संख्या स्त्रियों कि तुलना मे काफी अधिक है ) भी वही करते दिखे ..क्या उचित था दामिनी को सिंगापुर भेजना...? भारतीय डाक्टर तो आज मिशाल कायम करने को हैं... लेकिन क्या हुआ अंजाम..? क्या यहाँ पर पुरुषों की प्रधानता नहीं दिखती ...? दामिनी शायद बच सकती थी अगर उसका इलाज भारत मे होता..... खैर...मेरा भारत महान  ......
मेरे महान भारत की महान बहनों और बेटियों अब तो आप जागृत हो जाओ ..होश मे आओ ...आज का दौर परिवर्तन का दौर है ....हर मोड़ पे आपको नरभक्षी खड़े मिल सकते हैं ...मोमबत्तियाँ जलने वाले पूरे देश में मिलेंगे.....खुद को उनसे बचाओ ...नहीं तो दामिनी बन जाओ......हम सुधरेंगे देश सुधरेगा .....

और अंत मे....
                      हाय अबला तेरी यही कहानी                           
   आँचल मे दूध आँखों मे पानी...                      

4 टिप्‍पणियां:

  1. व्यंगात्मक शैली में लिखी पोस्ट ... पर बहुत सटीक ओर सच्ची बात लिख दि आपने ...

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  2. इक नारी को घेर लें, दानव दुष्ट विचार ।
    शक्ति पुरुष की जो बढ़ी, अंड-बंड व्यवहार ।

    अंड-बंड व्यवहार, करें संकल्प नारियां ।
    होय पुरुष का जन्म, हाथ पर चला आरियाँ ।

    काट रखे इक हाथ, बने नहिं अत्याचारी ।
    कर पाए ना घात, पड़े भारी इक नारी ।।

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मेरी रचनाओं पर आपके द्वारा दिए गए प्रतिक्रिया स्वरुप एक-एक शब्द के लिए आप सबों को तहे दिल से शुक्रिया ...उपस्थिति बनायें रखें ...आभार