मैंने कल पानी में चाँद देखा
बिल्कुल शांत स्थिर चाँद को
पानी में हिलते
हिचकोले खाते देखा
फिर
सर उठाया तो
मुझे हर तरफ
चाँद ही चाँद नजर आया
ना जाने
कितने ही चाँद
हमारे यहाँ
पानी में हिचकोले खा रहे होंगे
सुना है
पानी धो डालता है
सब कुछ
बहा डालता है
कुछ भी
लेकिन चाँद को धो नहीं पाया
बहा नहीं पाया
चाँद के अस्तित्व को
मैं क्या समझूँ
चाँद अपना दाग धोने को आतुर है या
पानी अपना कर्तव्य
निर्वहन नहीं कर रही
मैं किससे पूछूँ
पानी से या फिर
पानी में हिलते चाँद से.......
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंपानी में हिलते चाँद से .... :))
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंकल 10/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
नमस्ते पंकज जी ,
जवाब देंहटाएंआज पहली बार आपकी रचना पढ़ी मैंने. बहुत अच्छी लगी यह रचना. रचना के अंत में पानी और चाँद के बीच का अंतर्द्वंद बहुत सार्थक और सजीव लगा.
बहुत सुन्दर रचना है...
जवाब देंहटाएंप्यारे से भाव...
अनु
सुंदर प्रस्तुति .....
जवाब देंहटाएंपानी निर्वहन कर रही की जगह केआर रहा होना चाहिए
धन्यवाद आगे से ध्यान रखूँगा
हटाएंवाह||
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचना...
:-)
पानी धो डालता हैं
जवाब देंहटाएंसब कुछ
बहा डालता है
एक उम्दा सोच के साथ गजब की प्रस्तुती .. : ))
My first story-
बेतुकी खुशियाँ
अलग सोच ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ....
जवाब देंहटाएंbahut sundar aur gahan abhivyakti , khub pakadaa hai aapane daag dhone ko aatur chaand aur paani kii bebasi ko
जवाब देंहटाएंAbhinandan !