मेरे विचारों का ये सिलसिला
जारी रहेगा मौत के बुलावे तक..........
@पंकज कुमार साह,,,,
शनिवार, 21 जुलाई 2012
बंधन
तुम मुझे बांधती गयी
और मैं बंधता गया बिना किसी हिचकिचाहट के,
फिर अचानक एक दिन
चौंक उठा मैं
लगा जैसे, अभी-अभी तन्द्रा टूटी हो मेरी
मैं पूछ बैठा
इतनी कसाव क्यो,
यह कैसा बंधन है ?
तुम चुपचाप मुस्कुराती रही
बिना कुछ बोले.....
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मेरी रचनाओं पर आपके द्वारा दिए गए प्रतिक्रिया स्वरुप एक-एक शब्द के लिए आप सबों को तहे दिल से शुक्रिया ...उपस्थिति बनायें रखें ...आभार
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