माँ को मालूम नहीं है 
की लिख चुका हूँ 
कितनी ही कविताएँ उसके नाम
से,
उसे तो यह भी मालूम नहीं 
की वो
मेरी कविताओं में ना होकर
भी मौजूद रहती है 
किसी न किसी रूप में ,
मेरी माँ खीझ उठती है 
मेरी कविताओं से 
कहती है –
मुझे क्या मतलब 
तेरी इन कविताओं से ....
सच है 
उसे कोई मतलब नहीं 
मेरी कविताओं से,
लेकिन उसे तो यह भी पता
नहीं 
कि 
मेरी कविताओं का मतलब तो
सिर्फ 
उसी से पूरी होती है ....|
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