शनिवार, 2 अप्रैल 2016

मेरी दस कविताएं ( मार्च )

1.विरोध
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तुम्हारा आना
महज एक संयोग या
मेरी किस्मत नहीं थी
लेकिन
तुुम्हारे जाने का विरोध मैं
अंतिम क्षण तक करता रहूंगा
खोलता गया खुद को
परत दर परत
मुझे नहीं पता
उन परतों के लिबास में
कैसी लगोगी तुम,,,,
                                         ,,,,,,,,,,, 2 मार्च
 2.                      
जहां भी होगी तुम
कुछ जरूर कौंधा होगा मेरी तरह
तुम्हारे भी जेहन में
हां, आज फिर शिवरात्रि का दिन है
मेरे साथ तुम्हारा भाग जाने वाली बात करने का दिन
और तुम्हारी बातों को एक सिरे से नकार देने वाला दिन
क्योंकि तुम मेरे प्रिय होने से पहले
एक प्रेम में डूबी लड़की थी
और तुम्हारे लिए समाज के बहुत सारे नियम लागू होते थे एक साथ
मुझे नहीं मालूम
वो सिर्फ तुम्हारा मजाक था
या फिर
सचमुच बिताना चाहती थी जिंदगी
मेरे साथ
लो आज वही दिन फिर आ गया
लेकिन तुम नहीं हो
ना ही तुम्हारी बातें
जिंदगी सचमुच मजाक बन गयी
मैं आज भी वहीं हूं
भले तुम नहीं हो
ना वक्त ठहरा और ना ही तुम
लेकिन आज भी तुम्हारा प्रेम
ठहरा हुआ है मेरे भीतर  ,,,,,,
                                           ,,,,,,,,,,7 मार्च

3.तुम जलो स्री
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तुम जलो स्री
जलती रहो
कभी अपनों के साथ
ससुराल में जलो
कभी परायों के साथ
मायके में जलो
कभी तेजाब से जलो
कभी निर्भया बन जलो
तुम जलती रहो
कभी चुल्हे में अंगीठी बन जलो
कभी अंधेरे दीपक बन जलो
तुम जलो स्री
जलती रहो
तुम्हारे लिए सब छलावा है
महिला दिवस बस दिखावा है
तुम इन सब पर ध्यान मत दो स्री
अपना अधिकतर समय
जलने में व्यतीत करो
तुम्हारे जलने से ही प्रकाशित है चाँद
तुम जलो स्री
बस जलती रहो,,,,,,
                                   ,,,,,,,,,,,,,,,,, 8 मार्च

4.माल्या
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कर्ज लिया है
तो चुका दूंगा
पागल हो,,,
इस देश का कर्ज
कोई चुका पाया
आज तक
जो आप ,,
अच्छा किया
जो देश छोड़ दिया
कुछ तो फर्क हो
आप में और उनमें
वो सिर्फ बातें करते हैं
देश छोड़ने की
और यहां गली मुहल्ले में
बातें शुरू हो जाती है
और आप
कब चले गए
बातें करने का समय ही न दिया
अच्छा किया,,,,,
                                ,,,,,,,,,,,,,, 10 मार्च

5.तुम्हारा प्रेम
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तुम्हारा प्रेम
मंदिरों में बंट रहा प्रसाद नहीं
जिसे पाने के लिए भीड़ में
हाथ फैलाए खड़ा रहूं
तुम्हारा प्रेम तो
उस पंचामृत के समान है
जिसे ग्रहण करने के बाद
लोग अपने हाथ सर पर पोंछते हों
और बस घूंट मात्र में ही खुद को
तृप्त महसूसते हों,,,,,
                          ,,,,,,,,,,,,12 मार्च


6.गांव में मकान नहीं होता
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गांव में मकान नहीं होता
झोपड़ी और मड़ैया हुआ करती है
घास फूस की दीवार हुआ करती है
संयोग वश आपके पास मकान है तो
आप उन लोगों में गिने जाते हैं
जो आपको हैसियत वाला कहलाने पर
मजबूर करता है
आप झोपड़ी में रहते हैं तो कीड़े हैं
ये बात और है कि
उसी कीड़े की उपज पर वो अपनी हैसियत बघारते हैं
मलमल के कुर्ते और
मुंह में पान दबाए चलते हैं
आज भी मकानों की तपिश से
झुलस रही है झोपड़ियां
गांव खत्म नहीं हो रहा
बस
शहर होता जा रहा है
परम्पराएं खत्म नहीं हो रही
मिटायी जा रही है
चूंकि हम कुचले जा रहे हैं
इसलिए हम कीड़े होते जा रहे है,,,,
                                       ,,,,,,,,,,,,,,18 मार्च

7.खामोशी
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कभी कभी
खामोशी अपने भीतर अतीत समेटे
चुहलबाजी कर रही होती है हमारे साथ
और हम उस अतीत को भूलाने में
खामोश बैठे होते हैं
हमारा अतीत
हमारी खामोशी से इतर नहीं होता
बस कोशिश रहती है
किसी एक को नजरअंदाज किया जाए
पर किसे
उस अतीत को
जिसे भुलाने में
खामोशी परत दर परत चढती जाती है
हमारे मस्तिष्क पर
और दिन ब दिन खोखले होते जाते हैं हम
या फिर उस खामोशी को
जो हमें अतीत भूलने नहीं देती
और अस्थि पंजर होकर रह जाते हैं हम,,,,
                                         ,,,,,,,19 मार्च

8.आज होली है
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आओ रंग लगाएं हम सब
मन के द्वेष मिटा लें हम सब
आज होली है
आओ बचाएं एक और प्रह्लाद
एक और होलिका जलाएं हम सब
आज होली है
फर्क मिटा दें ऊंच नीच का
बैर मिटा लें हम बीच का
आज होली है
रंग लें अपने तन मन हम सब
रंग दें सबके तन मन हम सब
आज होली है
                                      ,,,,,,,,,,,,,, 23 मार्च

9.लोकतंत्र का प्रसव काल
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यह समय
लोकतंत्र के प्रसव काल का है
आइ सी यू में भर्ती
लोकतंत्र की चीख
हर कोई कान लगाए सुन रहा है
बाहर चहलकदमी कर रही भीड़ में खुशी है
कुछ लोग
कफन की व्यवस्था में लगे हैं
इन सबसे बेखबर
लोकतंत्र बेसुध पड़ी है
आइ सी यू के बेड पर
चारों ओर से मुंह ढके चिकित्सक खड़े हैं
हाथों में दस्ताना लगाए
उन्हे भी डर है संक्रमण का,,,,,

                                            ,,,,,,,,,28 मार्च

10.कवि नित्यानंद गायेन के लिए
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वो प्रेम बोते हैं
प्रेम सींचते हैं
लेकिन
प्रेम काटते नहीं
नफरत का पीढा मिलता है उन्हें बैठने को
बशर्ते वो
प्रेम कविताएं लिखते हैं
प्रेम की आड़ में वो सत्ता पक्ष की
बखिया भी खूब उधेड़ते हैं
खुद को कम्युनिस्ट
और सत्ताधारी को कैपिटलिस्ट कहते हैं
बशर्ते कवि
कभी झूठ ना बोलते हों
लेकिन
उनका सच उन्हें प्रेम से अलग नहीं होने देता
वो खूब प्रेम कविताएं लिखते हैं
और खूब गालियां भी सुनते है
क्योंकि कवि
प्रेम ओढता है
प्रेम बिछाता है
और सब पर छा जाता है
काले बादल के मानिंद
जो कभी बरसता है तो
पानी नहीं बरसता
सबकी आंखों से
खून बरसता है खून,,,
                                          ,,,,,,,,,,31 मार्च
© पंकज कुमार साह