जब घर में अँधेरा छाता है
चाँद भी मुँह फेर जाता है
लोगों के ताने को सुन
सूरज उगने से घबराता है
जब रोज-रोज की बदहाली से
घर में तंगी हो जाती है
घरवाला माथा पिटता है
घरवाली मायके चली जाती है
जब बंजर भूमि को देख किसान
आत्महत्या कर लेते हैं
तब नया फरिश्ता आता है
संग नयी योजना लाता है
झोपड़ियों की डिबिया बुझा
शौक से बिजली चमकता है
जब पिज्जा बर्गर की आंधी
में
सूखी रोटी उड़ जाती है
कोई तरसता है दाने-दाने को
कोई लात मरता खाने को
लोकतंत्र है पर लोक नहीं
न राजतन्त्र में राजा
आधा से ज्यादा लूट चुके
कहते हैं
जो बचा है वो भी आजा
दुनिया है दिलदारों की
कमी नहीं कद्रदानों की
जब कोई हुंकार लगाता है
और सोए को जगाता है
सरकार फुर्सत से खबर छपवाती है
और उनको जेल भिजवाती है
भला हमारे आकाओं की
ये कैसी मनमानी है
ये सिर्फ एक की नहीं
पूरे देश की कहानी है......
पूरे देश की कहानी है........
पूरे देश की कहानी है.............|